Saturday, July 20, 2019

कैपेसिटर / कन्डेन्सर

कैपेसिटर / कन्डेन्सर - जब दो चालक प्लेटों को किसी कुचालक माध्यम से इस प्रकार पृथक किया जाये कि वह विधुत क्षेत्र स्थापित करने में सक्षम हो तो वह कपैसिटर कहलाता है । कपैसिटर की इकाई फैरेड है इसे f से दर्शाते है । प्लेटों का आकार अधिक होने से केपैसिटर अधिक चार्ज एकत्रित करेगा । और प्लेटों के बीच की दूरी जितनी कम होती है धारिता उतनी ही अधिक होती है ।

कैपेसिटेंस - चार्ज या वोल्टेज के अनुपात को कैपेसिटेन्स कहते है ।

कैपेसिटर मुख्यतः दो प्रकार के होते है
1 fixed type capacitor .
2 variable type capacitor .
फिक्सड टाइप कैपपेसिटर - इन capacitors की धारिता को बदल कर कम या ज्यादा नहीं किया जा सकता । इस प्रकार के कैपेसिटर में माइका कैपेसिटर, सिरेमिक कैपेसिटर, पेपर कैपेसिटर, इलेक्ट्रोलाइटिक कैपेसिटर आदि कैपेसिटर आते है ।

वेरियेवल कैपेसिटर - वे कैपेसिटर जिनके मान या धारिता को कम या जयादा किया जा सकता है वेरियेवल कैपेसिटर कहलाते है । जैसे कि अधिक कैपेसिटरों के प्रयोग से और ऐयर कैपेसिटर इत्यादि इसमें एयर कैपेसिटर के भी विभिन्न प्रकार है जैसे - Trimmer capacitor, Padder capacitor, gang capacitor etc etc .

कैपेसिटर का प्रयोग -

1 मोटरों में2 इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में3 पॉवर फैक्टर सुधारने में4 स्पार्किंग कम करने में5 चार्ज एकत्रित करने में

चालक ( कन्डक्टर )

चालक ( कन्डक्टर ) - वह प्रदार्थ जिससे इलेक्ट्रिक करंट आसानी से गुजर सके चालक कहलाता है । जिन चालकों पर विधुत प्रतिरोधक प्रदार्थों की एक या एक से अधिक परत चढ़ी होती है उन्हें इन्सुलेटिड कंडक्टर कहते है ।

अर्द्धचालक - सेमि कंडक्टर - वह प्रदार्थ जो न तो अच्छे चालक होते है और न ही अच्छे कुचालक सेमि कंडक्टर कहलाते है । यह कम कम ताप पर चालक की भांति कार्य करते है और अधिक तापमान पर कुचालक बन जाते है । यह एक प्रतिरोधक एलॉय तथा मिश्रित एलॉय है ।

एक अच्छे चालक में निम्न लिखित गुण विद्यामान होने चाहिए -

1 कम विशिष्ट प्रतिरोध ।2 जंग के प्रभाव से मुक्त ।3 चादर बनाने योग्य ।4 अधिक यांत्रिक शक्ति ।5 अधिक गलनांक बिंदु ।6 आसानी से उपलब्धता ।7 कम कीमत ।8 तार खीचने योग्य ।9 सोल्डर किये जाने योग्य ।10 प्रचुर मात्राप्रथम 5 अधिक चालकता वाले चालक -1 चांदी2 ताँबा3 सोना4 एल्युमीनियम5 ज़िंक

कुछ अर्द्धचालकों की बनावट -

1 यूरेका - 40% निकल 60% ताँबा2 नाइक्रोम - 80% निकल 20% क्रोमिय3 मैग्नीन - 84% ताम्बा 12% मैग्निन 4% निकल4 जर्मन सिल्वर - 60% ताम्बा 15% निकल 25% जिंक ।5 कैंथोल - 50% क्रोमियम 30% निकल 20% आयरन ।6 प्लैटिनाइड - 64% ताँबा 15% निकल 20% ज़िंक 1% टंगस्टन7 कार्बन - कार्बन एक ऐसी धातु है जिसकी सपैसिफिक रेजिस्टेंस अधिक होती है और इसकी रेजिस्टेंस तापमान बढ़ने पर घटती है और तापमान घटने पर बढ़ती है ।

अर्धचालकों के गुण -

1 अर्द्धचाक हलके तथा छोटे होते है ।2 दक्षता अधिक होती है ।3 वातावरण के प्रभाव से मुक्त होते है ।4 कम विधुत खर्च करते है ।

प्रतिरोध

प्रतिरोध प्रदार्थ का वह गुण है जो विधुत धरा के मार्ग में रूकावट उत्पन्न करता है । रेजिस्टेंस की इकाई ओह्म है और इसे R से दर्शाते है । प्रतिरोध को नापने के लिए ओह्म मीटर का प्रयोग किया जाता है । प्रतिरोध क्सहलक के क्षेत्र के विलोमनुपति होता है तथा चालक की लम्बाई के समानुपाती 

विशिस्ट प्रतिरोध - किसी भी प्रदार्थ के 1 सेंटी मीटर लंबे 1 सेंटी मीटर चौडे और 1 सेंटी मीटर मोटे घन की किन्ही दो समान्तर सतहों के बीच का प्रतिरोध उस प्रदार्थ का विशिष्ट प्रतिदोध कहलाता है ।

conductance- चालकता प्रदार्थ का वह गुण है जो विधुत धरा को बहने में सहायता प्रदान करता हैै ।

विशिस्ट चालकता - किसी भी प्रदार्थ के 1 सेंटी मीटर लंबे 1 सेंटी मीटर चौडे और 1 सेंटी मीटर मोटे घन की किन्ही दो समान्तर सतहों के बीच का चालकता उस प्रदार्थ का विशिष्ट चालकता कहलाती है ।

प्रतिरोधक - जब किसी प्रदार्थ के टुकड़े या उससे बने तार के एक अंश को एक निश्चित प्रतिरोध मान प्रस्तुत करने वाले कम्पोनेन्ट का रूप दे दिया जाये त प्रतिरोधक कहलाता है । Resistor 2 प्रकार के होते है -
1 कार्बन प्रतिरोधक
2 वायर वाउंड प्रतिरोध

प्रतिरोध प्रदार्थ का गुण है तथा प्रतिरोधक प्रदार्थ से बना कम्पोनेन्ट है ।
वह प्रदार्थ जो अपने में से विधुत धरा को बहने न दे इंसुलेटर कहलाता है । जैसे पोर्सलीन, बैकलाइट, तथा रबड़ इत्यादि ।

ओह्म का नियम - किसी सर्किट में बहने वाला करंट उस सर्किट को दी जाने वाली वोल्टेज के समानुपाती के समानुपाती होता है परंतु यह तभी संभव है जब सर्किट की भौतिक अवस्थाएं जैसे ताप क्रम इत्यादि न बदले ।

ओह्म का नियम - किसी सर्किट में बहने वाला करंट उस सर्किट को दी जाने वाली वोल्टेज के समानुपाती के समानुपाती होता है परंतु यह तभी संभव है जब सर्किट की भौतिक अवस्थाएं जैसे ताप क्रम इत्यादि न बदले ।

किरचौफ का नियम - किरचौफ का नियम वहां इस्तेमाल होता है जहाँ पर ओह्म के नियम के द्वारा विभिन्न विभिन्न चालकों में बहने वाले करंट का मान तथा कई मिले जुले प्रतितोधों का कुल प्रतिरोध ज्ञात नहीं किया जासकता हो । किरचौफ के 2 नियम है ।

ताप गुणांक - किसी प्रदार्थ के प्रतिरोध में 0 डिग्री C से 1 डिग्री C ताप क्रम बढ़ने पर प्रति ओह्म जो अंतर आता है वह उस प्रदार्थ का तापगुणांक कहलाता है ।

करंट युक्त चालक में चुम्बकीय बाल रेखाओ की दिशा ज्ञात करने के लिए दो नियम प्रयोग किये जाते है - 1 Right hand thumb rule 2 Cork screw rule

करंट युक्त चालक में चुम्बकीय बाल रेखाओ की दिशा ज्ञात करने के लिए दो नियम प्रयोग किये जाते है -
1 Right hand thumb rule
2 Cork screw rule
दायें हाथ के अंगूठे का नियम - किसी करंट युक्त कंडक्टर को दायें हाथ से इस प्रकार पकड़ें कि अंगूठा विधुत धरा की दिशा में रहे तो अंगूठा मैग्नेटिक फ्लक्स की दिशा को दर्शायेगा ।

कॉर्क स्क्रू रूल - किसी करंट युक्त चालक के एक सिरे पर बोतल की कारक खोलने वाले पेच की नोक विधुत धरा की दिशा में खोला जाये तो पेच के खोलने की दिशा ही करंट युक्त कंडक्टर में चुम्बकीय बल रेखाओं की दिशा होगी ।

एम्पियर का नियम - एम्पियर का नियम ओवर हेड लाइनों में करंट की दिशा ज्ञात करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । यह नियम वैज्ञानिक साइसदन एम्पियर ने बनाया था ।

इलेक्ट्रोलाइट - इलेक्ट्रोलाइट एक तरल चालक का घोल है तथा रासायनिक प्रतिक्रियाओं से गुजरता है ।

इलेक्ट्रोलाइट - इलेक्ट्रोलाइट एक तरल चालक का घोल है तथा रासायनिक प्रतिक्रियाओं से गुजरता है ।

विधुत धरा का रासायनिक प्रभाव - विधुत धारा इलेक्ट्रोलाइट से गुजारने पर जो प्रभाव इलेक्ट्रोलाइट पर पड़ता है उसे हम विधुत धरा का रासायनिक प्रभाव कहते है । इस रासायनिक प्रभाव से हम अपने दैनिक जीवन में बहुत से अत्यंत आवश्यक कार्य सिद्ध कर पाते है जैसे कि इलेक्ट्रो प्लेटिंग और इलेक्ट्रो टाइपिंग इत्यादि ।

इलैक्ट्रोलीसिस / अपघटन - अगर विधुत धारा को इलैक्ट्रोलाइट में से गुजरा जाये तो इलैक्ट्रोलाइट अपने अव्यवों में बंट जाता है । इलैक्ट्रोलाइट का इस तरह अवयवों में बंटने की क्रिया को electrolysis या अपघटन कहा जाता है ।
अपघटन के उपयोग -

1 विधुत लेपन - यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे एक धातु की परत दूसरी धातु पर चढ़ाई जाती है ।2 इलेक्ट्रो टाइपिंग - इस विधि में पेपर पर धातु की छपाई की जाती है ।3 इलेक्ट्रो मेटालर्जी - इस विधि में धातुओं को उनके योगिक में से निकल कर शुद्ध किया जाता है ।4 सकेंड्री बैटरी बनाने में ।

सैल - सैल एक ऐसा यन्त्र है जिसे रासायनिक ऊर्जा से विधुत ऊर्जा प्राप्त होती है सेलों के समूह को बैट्री कहते है । सैल मुखयतः 2 प्रकारबके होते है - 1 Primary cell  2 Secondary cell बैट्री - दो या दो से अधिक सैलों को श्रेणी में जोड़ना बैट्री कहलाती है । इसमें emf अधिक रहती है ।

सैल - सैल एक ऐसा यन्त्र है जिसे रासायनिक ऊर्जा से विधुत ऊर्जा प्राप्त होती है सेलों के समूह को बैट्री कहते है ।

सैल मुखयतः 2 प्रकारबके होते है -
1 Primary cell 
2 Secondary cell

बैट्री - दो या दो से अधिक सैलों को श्रेणी में जोड़ना बैट्री कहलाती है । इसमें emf अधिक रहती है ।

प्राइमरी सेल - इस श्रेणी में वे सेल आते है जिन्हें रासायनिक क्रिया द्वारा विधुत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए कुछ रासायनिक प्रदार्थ डाले जाते है तथा सेल के डिस्चार्ज होने पर सेल को दोबारा चार्ज नहीं कर सकते अर्थात सेल को डिस्चार्ज होने पर फिर इस्तेमाल नहीं कर सकते । सवल की आयु सेल में प्रयोग किये गए प्रदार्थ पर निर्भर करती है । प्राइमरी सेल के प्रकार -

1 ड्राई या शुष्क सेल 2 साधारण वोल्टाइक सेल3 मरकरी सेल4 डेनियल सेल5 लैकलांची सेल 6 सिल्वर आक्साइड सेल 

सैकेण्डरी सेल - इस श्रेणी में वे सैल आते है जिन्हें बाहरी स्त्रोत द्वारा चार्ज किया जा सकता है । यह सेल विधुत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में एकत्रित करते है और बाद में आवश्यकता पड़ने पर विधुत ऊर्जा के लिए इस्तेमाल किया जाता है । इस सेल को डिस्चार्ज होने के बाद दोबारा चार्ज करके इस्तेमाल किया जा सकता है । सैकेण्डरी सेल के प्रकार -
1 लेड एसिड सेल
2 निकिल कैडमियम सेल
3 निकिल आयरन सेल

AC के लाभ

A.C के लाभ -

1. AC को 400 kV तक ट्रांसमिट किया जा सकता है ।2. ट्रांसफार्मर का प्रयोग करके वोल्टेज को आवश्यकता अनुसार कम या अधिक किया जा सकता है ।3. AC बहुफेज होने के कारण अत्यधिक लाभकारी है ।4. किफायती है । कम खर्च पर अधिक लाभ प्रदान करने वाली है ।5. AC बहु फेज़ मोटरें सेल्फ स्टार्ट होती है ।

A.C की हानियां -

1. AC का बैटरी चार्जिंग में इस्तेमाल नहीं जो सकता ।2. AC सिंगल फेज मोटरें सेल्फ स्टार्ट नहीं होती ।3. AC सप्लाई में लीकेज का खतरा अधिक रहता है ।4. ए.सी धरा में कम्पन्न होता है । बहुत से उपकरणों में कम्पन्न के कारण इसका इस्तेमाल नहीं हो सकता ।5. ए.सी. धरा से एलेक्ट्रोप्लेटिंग नहीं की जा सकती ।6. ए सी में मोटरों की स्पीड को आसानी से कंट्रोल नहीं किया जा सकता ।

D.C के लाभ -

1. DC में फ्रीक्वेंसी नहीं होती ।2. डी सी में मोटरों की स्पीड को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है ।3. DC का प्रयोग बैटरी चार्जिंग के लिए किया जा सकता है ।4. DC का प्रयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए किया जाता है ।

D.C की हानियां -1. डी सी सप्लाई बहुत महगी पड़ती है ।

2. DC जनरेटर की आउटपुट कम होती है ।3. DC में ट्रांसफार्मर का प्रयोग नहीं किया जा सकता है ।4. डी.सी धरा 650 वाल्ट से अधिक पैदा नहीं की जा सकती ।

प्राइमरी और सैकेण्डरी सेल में अंतर -

प्राइमरी और सैकेण्डरी सेल में अंतर -

- प्राइमरी सेल की आयु कम होती है जबकि सैकेण्डरी सेल की आयु अधिक होती है ।- प्राइमरी सेल जैसे ही बन कर तैयार हो जाता है यह emf देना शुरू कर देता है जबकि सैकेण्डरी सेल चार्ज करने के बाद emf देना शुरू करता है ।- प्राइमरी सेल विभिन्न -2 धातुओं की प्लेटों से बना होता है जबकि सैकेण्डरी सेल में एक ही धातु की प्लेट प्रयोग की जाती है ।- प्राइमरी सेल डिस्चार्ज होने के बाद दोबारा चार्ज नहीं किया जा सकता जबकि सैकेण्डरी सेल को डिस्चार्ज होने पर दोबारा चार्ज करके इस्तेमाल कर सकते है ।- प्राइमरी सेल का आन्तरिक प्रतिरोध अधिक होता है जबकि सैकेण्डरी सेल का आन्तरिक प्रतिरोध कम होता है ।- प्राइमरी सेल की emf कम होती है जबकि सैकेण्डरी सेल की emf अधिक होती है ।- प्राइमरी सेल वजन में हलके होते है जबकि सैकेण्डरी सेल वजन में भारी होते है ।- प्राइमरी सेल निम्न दर पर विधुत धारा प्रदान करते है जबकि सैकेण्डरी सेल उच्च दर पर विधुत धारा प्रदान करते है ।

पूर्ण चार्ज बैट्री की पहचान -

पूर्ण चार्ज बैट्री की पहचान -
वोल्टेज द्वारा - जब बैट्री पूर्ण चार्ज हो जाती है तो इसकी टर्मिनल वोल्टेज 2.5 वोल्ट हो जाती है ।

प्लेटों के रंग द्वारा - जब बैट्री पूर्ण चार्ज हो जाती है तो +ve प्लेट का रंग सफ़ेद से भूरा चॉकलेटी हो जाता है तथा -ve प्लेट का रंग सफ़ेद से सलेटी हो जाता है ।

गैस के निकलने से - जब बैट्री पूर्ण चार्ज हो जाती है तो +ve प्लेट से आक्सीजन गैस निकलती है तथा -ve प्लेट से हाइड्रोजन गैस निकलती है ।

इलैक्ट्रोलाइट के विशिष्ट गुरुत्व द्वारा - जब बैट्री पूर्ण चार्ज हो जाती है तो इलेक्ट्रोलाइट का विशिष्ट गुरुत्व 1.18 से बढ़ कर 1.21 हो जाता है । बैट्री का विशिष्ट गुरुत्व हाइड्रोमीटर द्वारा नापा जाता है ।

बैट्री की चार्जिंग अवस्था ज्ञात करने के लिए प्रयोग किये जाने वले उपकरण -

1 hydrometer
2 high rate discharge cell tester

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