Saturday, July 20, 2019

प्राइमरी और सैकेण्डरी सेल में अंतर -

प्राइमरी और सैकेण्डरी सेल में अंतर -

- प्राइमरी सेल की आयु कम होती है जबकि सैकेण्डरी सेल की आयु अधिक होती है ।- प्राइमरी सेल जैसे ही बन कर तैयार हो जाता है यह emf देना शुरू कर देता है जबकि सैकेण्डरी सेल चार्ज करने के बाद emf देना शुरू करता है ।- प्राइमरी सेल विभिन्न -2 धातुओं की प्लेटों से बना होता है जबकि सैकेण्डरी सेल में एक ही धातु की प्लेट प्रयोग की जाती है ।- प्राइमरी सेल डिस्चार्ज होने के बाद दोबारा चार्ज नहीं किया जा सकता जबकि सैकेण्डरी सेल को डिस्चार्ज होने पर दोबारा चार्ज करके इस्तेमाल कर सकते है ।- प्राइमरी सेल का आन्तरिक प्रतिरोध अधिक होता है जबकि सैकेण्डरी सेल का आन्तरिक प्रतिरोध कम होता है ।- प्राइमरी सेल की emf कम होती है जबकि सैकेण्डरी सेल की emf अधिक होती है ।- प्राइमरी सेल वजन में हलके होते है जबकि सैकेण्डरी सेल वजन में भारी होते है ।- प्राइमरी सेल निम्न दर पर विधुत धारा प्रदान करते है जबकि सैकेण्डरी सेल उच्च दर पर विधुत धारा प्रदान करते है ।

पूर्ण चार्ज बैट्री की पहचान -

पूर्ण चार्ज बैट्री की पहचान -
वोल्टेज द्वारा - जब बैट्री पूर्ण चार्ज हो जाती है तो इसकी टर्मिनल वोल्टेज 2.5 वोल्ट हो जाती है ।

प्लेटों के रंग द्वारा - जब बैट्री पूर्ण चार्ज हो जाती है तो +ve प्लेट का रंग सफ़ेद से भूरा चॉकलेटी हो जाता है तथा -ve प्लेट का रंग सफ़ेद से सलेटी हो जाता है ।

गैस के निकलने से - जब बैट्री पूर्ण चार्ज हो जाती है तो +ve प्लेट से आक्सीजन गैस निकलती है तथा -ve प्लेट से हाइड्रोजन गैस निकलती है ।

इलैक्ट्रोलाइट के विशिष्ट गुरुत्व द्वारा - जब बैट्री पूर्ण चार्ज हो जाती है तो इलेक्ट्रोलाइट का विशिष्ट गुरुत्व 1.18 से बढ़ कर 1.21 हो जाता है । बैट्री का विशिष्ट गुरुत्व हाइड्रोमीटर द्वारा नापा जाता है ।

बैट्री की चार्जिंग अवस्था ज्ञात करने के लिए प्रयोग किये जाने वले उपकरण -

1 hydrometer
2 high rate discharge cell tester

लैड एसिड सैल की विशेषताएं -

लैड एसिड सैल की विशेषताएं -

- लोड पर लैड एसिड सैल कि वोल्टेज 2 वोल्ट होती है । चार्ज लैड एसिड सैल कि वोल्टेज 2.2 वोल्ट होती है । डिस्चार्ज लैड एसिड सैल कि वोल्टेज 1.8 वोल्ट होती है । तथा लैड एसिड सैल कि चार्जिंग वोल्टेज 2.4 वाल्ट होती है ।- डिस्चार्ज होने पर लैड एसिड सैल कि नेगटिव और पॉजिटिव प्लेट का रंग सफ़ेद होता है । चार्ज होने पर लैड एसिड सैल कि नेगटिव प्लेट का रंग सलेटी होता है तथा पॉजिटिव प्लेट का रंग भूरा चॉकलेटी होता है ।- डिस्चार्ज होने पर पर लैड एसिड सैल कि नेगटिव और पॉजिटिव प्लेट लैड सल्फेट से ढक जाती है । और चार्ज होने पर पर लैड एसिड सैल कि नेगटिव प्लेट स्पांजीलैड से ढक जाती है तथा पॉजिटिव प्लेट लैड परॉक्साइड से ढकी होती है ।- पूर्ण चार्ज होने पर इलेक्ट्रोलाइट की ग्रेविटी 1.28 होती है जबकि डिस्चार्ज होने पर इलेक्ट्रोलाइट की ग्रेविटी 1.18 होती है ।- लैड एसिड सैल को लगभग 1200 बार चार्ज व डिस्चार्ज किया जा सकता है ।- दक्षता लैड एसिड बैट्री की वाट आवर दक्षता 75 से 85 % होती है जबकि एम्पीयर आवर दक्षता 90 से 95 % तक होती है ।

लैड एसिड बैट्री में उत्पन्न होने वाले दोष -

लैड एसिड बैट्री में उत्पन्न होने वाले दोष -

1 सल्फेशन /sulphation - बैट्री के टर्मिनलों में सल्फेट की तह जैम जाती है जिसे सल्फेशन कहते है इससे बैट्री की क्षमता कम हो जाती है । यह दोष बैट्री को अधिक समय तक चार्ज व डिस्चार्ज रखने पर होता है ।2 बकलिंग / buckling - बैट्री की प्लेटों का मुड़ना बकलिंग कहलाता है । यह दोष बैट्री के डिस्चार्ज रखने व अधिक करंट देकर चार्ज करने से होता है । दोष दूर करने के लिए बैट्री की प्लेटों को बदल दिया जाता है ।3 sedimentation / सेंडीमेंशन - रासायनिक क्रिया के दौरान बैट्री की प्लेटों से इलेक्ट्रोलाइट का कुछ भाग निचे गिर कर बैट्री की तली में निचे एकत्रित हो जाता है जिसे बैट्री की आयु व वोल्टेज कम हो जाती है । यह दोष अधिक करंट व तापमान के कारण होता है इस दोष को सुर करने के लिए बैट्री को खोल कर साफ करके दोबारा फिट करना होता है । इस दोष को दूर करने के लिए बैट्री को ट्रिकल चार्जिंग पर चार्ज किया जाता है ।4 आन्तरिक शार्ट सर्किट / internal short circuit - यदि पॉजिटिव व नैगिटिव प्लेटे बिना किसी बाह्य प्रतिरोध के आपस में मिल जाए तो यह आंतरिक शार्ट सर्किट कहलाता है । इससे बैट्री की वोल्टेज कम हो जाती है तथा बैट्री ओवर हीट हो जाती है । बैट्री को सही करने के लिए बैट्री को खोल कर शार्ट सर्किट के कारण को जान कर बैट्री में सुधर करके बंद करना ।

विधुत क्या है

विधुत क्या है -एक ऐसी ऊर्जा जिसके बिना आधुनिक काल में मनुष्य का समस्त जीवन अंधकार मय है । अर्थात नवयुग में बिधुत का एक अपना अहम महत्व है । मनुष्य विधुत का अनेकों प्रकार से इस्तेमाल कर रहा है । विधुत ऊर्जा से ही मनुष्य चौमुखी विकास कर तहा है । हम यहाँ तक कह सकते है कि इस ऊर्जा के बिना मनुष्य का जीवन काल काफी अधूरा है हर स्थान पर हर कार्य में आज इलेक्ट्रिसिटी का इस्तेमाल किया जा रहा है । इलेक्ट्रिसिटी एक ऐसी ऊर्जा है जिसे मनुष्य अपनी आँखों से देख तो नहीं सकता परंतु इस ऊर्जा को भली भांती मासूस कर सकता है तथा इसके प्रभावों को पहचान सकता है । विधुत ऊर्जा को आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक लेजाया जा सकता है तथा आसानी से इसे नियन्त्रित भी किया जा सकता है । यह ऊर्जा परमाणुओं में electrons की गड़बड़ी से उत्पन्न होती है ।

विधुत ऊर्जा का इस्तेमाल हम निम्न रूपों में करते है जैसे कि -

प्रकाशीय ऊर्जा ।उष्मीय ऊर्जा ।चुम्बकीय ऊर्जा ।ध्वनि ऊर्जा ।यांत्रिक ऊर्जा । औररासायनिक ऊर्जा इत्यादि

Type of electricity

1. Static electricity.
2. Dynamic electricity.
Static electricity = Frictional electricity( स्थिर विधुत )- विधुत जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं पहुँचाया जा सकता हो उस विधुत हो स्थिर विधुत कहा जाता है । स्थिर विधुत को उपयोग में नहीं लाया जासकता है इससे कोई भी उपयोगी कार्य नहीं किया जा सकता । स्थिर विधुत घर्षण से उत्त्पन्न होत्ती है जैसे की बालों में कंघी की रगड़ से, कपडे पहनते समय कपड़ों में परस्पर रगड़ से और शीशे की छाड़ को रेशमी कपड़े पर रगड़ने से तथा अन्य कई प्रकार के घर्षण से इत्यादि । घर्षण से उत्त्पन्न होने के कारण इसे घर्षण विधुत भी कहा जाता है ।

Dynamic electricity -डायनामिक विधुत वह विधुत है जिसे अपनी आवश्यकता अनुसार उपयोग होने वाले स्थान पर पहुंचया जा सके । अर्थात वह विधुत जिसे हम एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सके डायनामिक इलेक्ट्रिसिटी कहलाती है । आधुनिक काल में इस धरा का अनेक कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है ।

इस विधुत के दो रूप है -
1. Direct current . (D.C)
2. Alternating current. (A.C)
Direct current( D.C )- वह विधुत धरा जो सीधी रेखा में चलती है और समय के अनुसार अपनी दिशा नहीं बदलती अपनी दिशा स्थिर रखती हैे डायरेक्ट करंट कहलाती है । बैटरियों तथा DC जैनरेटरों से हमें इसी प्रकर की धरा प्राप्त होती है ।

Alternating current ( A.C ) - ऐसी विधुत धारा जो समय के साथ अपनी दिशा व मान बदल लेती है AC कहलाती है । भारत में AC की आवृति 50 Hz है । यह अत्यधिक लाभकारी है ।

Advantages of A.C( A.C के लाभ )

Advantages of A.C( A.C के लाभ )

1. AC को 400 kV तक ट्रांसमिट किया जा सकता है ।2. ट्रांसफार्मर का प्रयोग करके वोल्टेज को आवश्यकता अनुसार कम या अधिक किया जा सकता है ।3. AC बहुफेज होने के कारण अत्यधिक लाभकारी है ।4. किफायती है । कम खर्च पर अधिक लाभ प्रदान करने वाली है ।5. AC बहु फेज़ मोटरें सेल्फ स्टार्ट होती है ।

Disadvantages of A.C ( A.C की हानियां ) -

1. AC का बैटरी चार्जिंग में इस्तेमाल नहीं जो सकता ।2. AC सिंगल फेज मोटरें सेल्फ स्टार्ट नहीं होती ।3. AC सप्लाई में लीकेज का खतरा अधिक रहता है ।4. ए.सी धरा में कम्पन्न होता है । बहुत से उपकरणों में कम्पन्न के कारण इसका इस्तेमाल नहीं हो सकता ।5. ए.सी. धरा से एलेक्ट्रोप्लेटिंग नहीं की जा सकती ।6. ए सी में मोटरों की स्पीड को आसानी से कंट्रोल नहीं किया जा सकता ।

Advantages of D.C ( D.C के लाभ )-

1. DC में फ्रीक्वेंसी नहीं होती ।2. डी सी में मोटरों की स्पीड को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है ।3. DC का प्रयोग बैटरी चार्जिंग के लिए किया जा सकता है ।4. DC का प्रयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए किया जाता है ।

Disadvantages of D.C ( D.C की हानियां )-

1. डी सी सप्लाई बहुत महगी पड़ती है ।2. DC जनरेटर की आउटपुट कम होती है ।3. DC में ट्रांसफार्मर का प्रयोग नहीं किया जा सकता है ।4. डी.सी धरा 650 वाल्ट से अधिक पैदा नहीं की जा सकती ।

Electrons, protons and neutrons - परमाणु के अन्दर मौजूद सुक्ष्मतम मूलकणों को इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन न्यूट्रॉन कहते है

Electrons, protons and neutrons - परमाणु के अन्दर मौजूद सुक्ष्मतम मूलकणों को इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन न्यूट्रॉन कहते है । न्यूट्रॉन्स और प्रोटोन्स परमाणु की नाभि में विद्यमान होतेे है जबकि परमाणु की नाभिक में कोई भी इलेक्ट्रॉन्स विद्यमान नहीं होते । इलेक्ट्रॉन्स परमाणु में नाभिक से बहार ही विद्यमान रहते है । इलेक्ट्रॉन्स सदैव नाभिक के चारों और घूमते रहते है ठीक उसी तरह जिस तरह की सौर मंडल में ग्रह सूर्य के चक्कर लगते रहते है ।

Electrons - इलेक्ट्रान वह कण होतेे है जिनमे ऋणात्मक आवेश विद्यमान होता है । इलेक्ट्रॉन्स वजन में बहुत ही हल्के होते है ।

Protons ( प्रोटोन्स ) - प्रोटोन्स वह कण होतेे है जिनमे धनात्मक आवेश विद्यमान होता है । प्रोटोन्स वजन में कुछ भारी होते है ।

Neutrons ( न्यूट्रॉन्स ) - न्यूट्रॉन्स वह कण होतेे है जिनमे कोई भी आवेश विद्यमान नहीं होता है । इलेक्ट्रॉन्स वजन में बहुत ही हलके होते है यह कण न्यूट्रल होते है ।

Free electrons ( मुक्त इलेक्ट्रॉन्स ) - स्वतन्त्र इलेक्ट्रॉन्स - परमाणु में नाभिक के निकट घूमने वाले इलेक्ट्रॉन्स आकर्षण के करण नाभिक की और खिचे रहते है । जबकि नाभिक से दूर घूमने वाले इलेक्ट्रॉन्स पर आकर्षण बल कम हो जाता है जिसके कारण ये इलेक्ट्रॉन्स एक दूसरे से अपना स्थान बदलते रहते है । इन इलेक्ट्रॉन्स का अपना कोई भी न तो विशेष स्थान होता है और न ही अपना कोई परिपथ । यह बिना आकर्षण बल के कारण स्वतन्त्र रूप से घूमते रहते है तथा मुक्त इलेक्ट्रॉन्स कहलाते है ।

क्यों लगता है करंट मनुष्य को

क्यों लगता है करंट मनुष्य को -
हमारा शरीर भी एक चालक की तरह जोता है जिससे की विधुत आसानी से गुजर सकती है । जब कोई करंट युक्त चालक हमारे शरीर से छु जाता है तो करंट अपना रास्ता शारीर से होते हुए अर्थ तक पूरा करता है । जिस कारण मनुष्य को करंट लगता है ।

विधुत से सम्बन्धित कार्य करते समय निम्न लिखित सावधानियां रखनी चाहिए जैसे कि -

बिजली का काम करते समय मेन स्विच बंद कर लेना चाहिए ।फेज वायर को हमेशा स्विच से नियंत्रित करना चाहिए ।तारों में जोड़ मजबूत लगा होना चाहिए और इन्सुलेटिड होने चाहिए ।बिजली से लगी आग पर पानी का प्रयोग न करें अपितु रेट का प्रयोग करें ।बिजली से लगी आग को बुझाने के लिए कार्बनडाइऑक्साइड का इस्तेमाल करें ।कार्य करते समय सही औजारों का चयन करें ।करंट वाली जगह नमीदार नहीं होनी चाहिए ।ख़राब तारों का इस्तेमाल न करें ।नंगे पैर बिजली का कार्य नहीं करना चाहिए ।ख़राब उपकरणों का इस्तेमाल न करें ।उपकरणों को प्लग टॉप की सहायता से सॉकेट से जोड़ें ।बैटरी चार्जिंग करते समय पानी में बून्द - बून्द करके तेजाब मिलाएं न कि तेजाब में पानी ।बैटरी चार्जिंग का कमर खुला व हवादार होना चाहिए ।टूटे हुए स्विच सॉकेट का इस्तेमाल न करें ।उपकरणों को सप्लाई से अलग करने से पहले स्विच बंद कर लेना चाहिए ।अर्थिंग सही होनी चाहिए ।उपकरणों की मुरम्मत करने से पहले उपकरणों को सप्लाई से अलग कर लेना चाहिए ।जेब में नुकीले तेज धार वाले औजार नहीं रखने चाहिए ।सदैव इन्सुलेटिड औजारों का इस्तेमाल करना चाहिए ।फ्यूज बदलते समय निम्न लिखित सावधानियां रखनी चाहिए -मेन स्विच बंद कर दो ।फ्यूज को रेटिंग अनुसार बदलो ।फ्यूज सही से बंद करो ।कारण ज्ञात करने के पश्चात ही फ्यूज बदलें ।ओवर हैड लाइन पर कार्य करते समय सावधानियां -लाइन का मेन स्विच बंद कर देना चाहिए ।सुरक्षा पेटी का इस्तेमाल करें ।पोल पर सावधानी से कार्य करें ।दस्ताने पहन लें ।चालाक को चैन से शार्ट सर्किट कर दें ।औजारों को तारों पर न लटकाएं ।ओवर हैड लाइन को जब तक न छुएं जब तक कि विश्वास न हो जाये कि लाइन पूरी तरह बंद है ।ढीले ढाले कपडे पहन कर ओवर हैड लाइन का कार्य न करें ।

H.R.C Cartridge fuse ( एच आर सी फ्यूज ) - इस फ्यूज का पूरा नाम हाई रैप्चरिंग कैपेसिटी कार्ट्रिज फ्यूज है ( high reputering cartridge fuse )

H.R.C Cartridge fuse ( एच आर सी फ्यूज ) - इस फ्यूज का पूरा नाम हाई रैप्चरिंग कैपेसिटी कार्ट्रिज फ्यूज है ( high reputering cartridge fuse ) यह फ्यूज 30A से 1000A तक की क्षमता में मिलता है । इस फ्यूज की खास विशेषता यह है कि यह कुछ समय तक दोष निवारण तक बिना उड़े रह सकता है । यह फ्यूज पूरी तरह बंद होता है । इस फ्यूज में एक सिरामिक की गोल ट्यूब होती है तथा ट्यूब के दोनों सिरों पर ताँबे के कांटेक्ट प्वाइंट लगे होते है जिससे कि फ्यूज एलिमेंट जुड़ा होता है । इस फ्यूज में चिंगारी की गर्मी को कम करने के लिए क्वार्टरज पाउडर भरा होता है जिससे कि फ्यूज में पैदा हुई चिंगारी से आग लगने का डर नहीं रहता । यह फ्यूज ओवर हेड लाइनों पर प्रयोग किया जाता है इस फ्यूज का अधिकतम प्रयोग सुब्स्टेशनों पर किया जाता है । यह फ्यूज तुरंत कार्य करने की क्षमता रखता है । इस फ्यूज को अधिक करंट पर प्रयोग कर सकते है । इस फ्यूज का एलिमेंट चाँदी का बना होता है ।
Cartridge fuse ( कार्ट्रिज फ्यूज ) - यह फ्यूज पूरी तरह बंद होता है तथा हाई वोल्टेज पर इस्तेमाल किया जाता है । इस फ्यूज में करोना से लड़ने की क्षमता होती है । इसका एलिमेंट ताँबा व टिन की मिश्र धातु से क्रमशः 63% + 37% से बना होता है । यह फ्यूज पोर्सलीन या कांच का बनता है तथा ट्यूब आकर में होता है । ट्यूब के अंदर फ्यूज एलिमेंट दोनों सिरों पर धातु के कांटेक्टों से साथ जुड़ा होता है तथा चिंगारी बुझाने के लिए फ्यूज में क्वार्टज पाउडर भरा रहता है । कार्ट्रिज फ्यूज 2A से 60A की क्षमता में पाया जाता है 33 के वी तक प्रयोग किया जाता है ।

Liquid fuse ( लिक्विड फ्यूज )- यह फ्यूज भी पूरी तरह बंद होता है । यह कांच से बानी ट्यूब का बनाया जाता है । ट्यूब को दोनों सिरों पर धातु की कैप द्वारा बंद किया जाता है तथा ट्यूब के एक सिरे पर अधिक प्रतिरोध वाली फ्यूज तार जुड़ी होती है और दूसरा सिरा शक्तिशाली फास्फोस ब्रॉन्ज के स्प्रिंग से जुड़ा होता है । यह फ्यूज शॉट सर्किट पर लाभ दायाक होता है । इस फ्यूज के अंदर कार्बन टैट्रा क्लोराइड ( सी टी सी ) द्रव भरा होता है । लिक्विड फ्यूज का इस्तेमाल ट्रांसफार्मर की सुरक्षा के लिए किया जाता है ।

CTC- सी टी सी वह प्रदार्थ है जो आग बुझाने में सक्षम है ।

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